छठ पर्व ऋषियों द्वारा वर्णित पुराण , महाभारत और रामायण काल में भी मिलता है वर्णन छठ पर्व परम्परागत मनाया जाता रहा है ।
हिरण्यगर्भ देव , भगवान सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है, क्योंकि वे पृथ्वी पर जीवन का आधार हैं। उनके आलोक को अपनी चेतना में धारण करने से जीवन प्रकाशित हो उठता है। छठ व्रत इन्हीं जीवनदायी सूर्य देव को आभार प्रकट करने का महापर्व है, जिसमें पूरा समाज बिना किसी भेदभाव के साथ सामूहिक रूप से उनकी आराधना करता है।
छठ में हम जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं। जल या आप: का एक अर्थ प्रेम भी है। जल प्रेम का प्रतीक भी है। ‘आप्त’ एक शब्द है, जो ‘आप:’ से बना है। आप्त का अर्थ है, ‘जो बहुत प्रिय हो।’
कार्तिक महीने की षष्ठी तिथि से शुरु होने वाला छठ पर्व हिंदूओं की गहरी आस्था का प्रतीक है। इस पर्व पर हिरण्यगर्भ भगवान सूर्य देव की आराधना की जाती है। भारत के बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश राज्यों में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाने वाला यह त्योहार बहुत ही कठिन माना जाता है। कई किंवदंतियों ने इस पर्व की आस्था को प्रगाढ़ता से जोड़ा हैं।
छठ व्रत से जुड़ी अनेक मान्यताएं है
पुराण में छठ पूजा के महत्व में एक ओर कथा है राजा प्रियवंद और रानी मालिनी की कोई संतान नहीं थी. महर्षि कश्यप के निर्देश पर इस दंपति ने यज्ञ किया, जिसके चलते उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई. दुर्भाग्य से यह उनका बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ।
इस घटना से विचलित राजा-रानी प्राण छोड़ने के लिए आतुर होने लगे. उसी समय भगवान की भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं. उन्होंने राजा से कहा कि क्योंकि वो सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं इसी कारण वो षष्ठी कहलातीं हैं. उन्होंने बताया कि उनकी पूजा करने से संतान सुख की प्राप्ति होगी।
राजा प्रियंवद और रानी मालती ने देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई. कहते हैं ये पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी और तभी से छठ पूजा होती है।
महाभारत काल के अनुसार जब कुंती अविवाहित थी तब एक सूर्य देव का अनुष्ठान किया था जिसके फलस्वरूप उन्हें पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई थी जिन्हें कर्ण के नाम से जाना जाता है लेकिन लोकलाज के भय से कुंती ने इस पुत्र को गंगा में बहा दिया था सूर्य के वरदान से उत्पन्न कर्ण भी सूर्य के समान तेज और अत्यधिक बलशाली भी थे जिसके चलते आगे चलकर लोग ऐसे सूर्य के समान पुत्र की कामना हेतु सूर्य उपासना और पूजा करने लगे
एक अन्य मान्यता के अनुसार सूर्य से जन्मे कर्ण सुबह शाम सूर्य की घंटो जल में रहकर पूजा उपासना किया करते थे जिसके कारण उनके जीवन पर सूर्यदेव की हमेसा से विशेष कृपा रही जिस कारण लोग सूर्य से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इस छठ पूजा का आयोजन करने लगे
अन्य कथाओ के अनुसार जब पांडव जुए में सबकुछ हारकर जंगल में निवास करने लगे तब अपने राज्य और सुख की प्राप्ति के लिए भी द्रौपदी ने माता कुंती के साथ सूर्य पूजा करती थी जिसका मुख्य उद्देश्य अपने परिवार की लम्बी आयु और स्वास्थ की कामना थी
नहाय-खाय से शुरू होने वाले छठ पर्व के बारे में कहा जाता है कि इसकी शुरूआत महाभारत काल से ही हो गई थी। एक कथा के अनुसार महाभारत काल में जब पांडव अपना सारा राजपाट ( द्युत ) जुए में हार गए थे तब द्रौपदी ने इस चार दिनों के व्रत को किया था। इस पर्व पर भगवान सूर्य की उपासना की थी और मनोकामना में अपना राजपाट वापस मांगा था। इसके साथ ही एक और मान्यता प्रचलित है कि इस छठ पर्व की शुरूआत महाभारत काल में कर्ण ने की थी। कर्ण भगवान सूर्य के अनन्य साधक भक्त थे और पानी में घंटो खड़े रहकर सूर्य की उपासना किया करते थे। जिससे प्रसन्न होकर भगवान सूर्य ने उन्हें महान योद्धा बनने का आशीर्वाद दिया था।
एक कथानक में ऐतिहासिक नगरी मुंगेर के सीता चरण में कभी मां सीता ने छह दिनों तक रह कर छठ पूजा की थी।
पौराणिक कथाओं के अनुसार 14 वर्ष वनवास के बाद जब भगवान राम अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूय यज्ञ करने का फैसला लिया। इसके लिए मुग्दल ऋषि को आमंत्रण दिया गया था, लेकिन मुग्दल ऋषि ने भगवान राम एवं सीता को अपने ही आश्रम में आने का आदेश दिया। ऋषि की आज्ञा पर भगवान राम एवं सीता स्वयं यहां आए और उन्हें इसकी पूजा के बारे में बताया गया। मुग्दल ऋषि ने मां सीता को गंगा छिड़क कर पवित्र किया एवं कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। यहीं रह कर माता सीता ने छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी।
उत्तर भारत मे इस पर्व को छठ पूजा, डाला छठ, छठी माई, छठ, छठ माई पूजा, सूर्य षष्ठी पूजा आदि कई नामों से जाना जाता है।
छठ पूजा का महापर्व बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखकर पूरे विधि विधान से छठ माता की पूजा करती हैं और सूर्य को अर्घ्य देती हैं। महिलाएं छठ पूजा का व्रत संतान प्राप्ति, संतान की सुख समृद्धि और लंबी उम्र के लिए करती हैं। यह पर्व मुख्य रुप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है।
छठ का व्रत काफी कठिन माना जाता है, इसलिए इसे महाव्रत भी कहते हैं। कार्तिक शुक्ल पक्ष की खष्ठी को यह पर्व मनाया जाता है। कहा जाता है कि छठ माता सूर्य भगवान की बहन हैं।
छठ पूजा को डाला छठ, छठी माई के पूजा, डाला पूजा और सूर्य षष्ठी पूजा के नाम से भी जाना जाता है
अनुसार प्रकृति की पूजा का विशेष प्रावधान है हमे ईश्वर को विभिन्न रूपों में मानकर उनकी पूजा अर्चना करते है पूरे ब्रह्माण्ड को रोशनी सूर्य से ही प्राप्त होता है और सूर्य के किरणों के तेज से ही इस धरती पर दिन रात सम्भव है जिसके कारण हिन्दू धर्म में सूर्य की उपासना का विशेष महत्व है जिस कारण छठ पूजा के माध्यम से लोग डूबते और उगते हुए सूर्य को अर्घ देते है और सभी लोग स्वस्थ रहे ऐसी सूर्यदेव से मंगल कामना करते है छठ पूजा की इसी विशेष महिमा के कारण लोग संतान प्राप्ति हेतु भी इस छठ पूजा का व्रत रखते है और लोगो का मानना है की छठ पूजा करने से माँ छठी प्रसन्न होती है और लोगो को सन्तान सुख की प्राप्ति होती है।
छठ पूजा का अपने आप में एक विशेष महत्व है पहले यह त्योहार भारत के पूर्वी भागो यानि उत्तर प्रदेश और बिहार तक ही सिमित था लेकिन जैसे जैसे सूचना के क्षेत्र में क्रांति आई है इस पर्व का प्रसार पूरे भारत, नेपाल जैसे दूर देशो तक फैलता जा रहा है इस पर्व की ऐसी मान्यता भी की जो लोग भी इस छठ पूजा के व्रत का विधिवत पालन करते है उन्हें कभी भी संतान सुख से अछूते नही रहते है और उनका शरीर स्वस्थ्य और निरोगी होता है।

छठ पूजा अर्घ्य समय
पहला दिन
31 अक्टूबर – नहाय-खाय दिन रविवार को छठ पूजा का प्रथम दिन है इस दिन सूर्योदय: 06:36 एवं सूर्यास्त: शाम 5:33 पर होगा। इस दिन से छठ पूजा का पर्व प्रारंभ हो जाता है।
दूसरा दिन
1 नवंबर – खरना सोमवार को छठ पूजा का दूसरा दिन है। इसदिन सूर्योदय से सूर्यास्त लेकर सूर्यास्त तक अन्न और जल दोनों का त्याग करके उपवास किया जाता है। इस दिन सूर्योदय: 06:47 औऱ सूर्यास्त: शाम 5:32 पर होगा । दूसरे दिन के अंत में खीर और रोटी का प्रसाद बनाया जाता है। इसे व्रत करने वाले से लेकर परिवार के सभी लोगों में बांटा जाता है। रात में चांद को जल भी दिया जाता है।
तीसरा दिन
तीसरे दिन 2 नवंबर को संध्या समय में सूर्य देवता को पहला अर्घ्य दिया जाता है। इसदिन भी पूरे दिन का उपवास किया जाता है। इस दिन सूर्योदय: 06:37 सूर्यास्त: शाम 05:32 पर होगा। तीसरे दिन शाम को सूर्यास्त से पहले सूर्य देवता को छठ पूजा का पहला अर्घ्य दिया जाता है।
चौथा दिन
यह छठ पूजा का अंतिम दिना होता है। 3 नवंबर, रविवार की सुबह सूर्य देवता को अर्घ्य दिया जाएगा। यह छठ पूजा का दूसरा अर्घ्य होता है जिसके बाद 36 घंटे के लंबे उपवास का समापन हो जाता है। इस दिन सूर्योदय: 06:36 तथा सूर्यास्त: 5:31 पर होगा।
रविशराय गौड़
ज्योतिर्विद