दिवाली पर्व का शुभारंभ 25 अक्टूबर धनतेरस यानी ‘धनत्रयोदशी’ से हो जाएगा। इस बार धनतेरस के दिन शुक्र प्रदोष और धन त्रयोदशी का महासंयोग लगभग 100 वर्ष बाद बन रहा है। इस दिन बह्म व सिद्धि योग रहेगा। इस दिन जो भी शुभ कार्य या खरीददारी की जाएगी वह समृद्धिकारक होगी।
धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि, मां लक्ष्मी, भगवान कुबेर और यमराज की पूजा का विधान है ।
धनतेरस के दिन आरोग्य के देवता और आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है. मान्यता है कि इस दिन धन्वंतरि की पूजा करने से आरोग्य और दीर्घायु प्राप्त होती है. इस दिन भगवान धन्वंतरि की प्रतिमा को धूप और दीपक दिखाएं. साथ ही फूल अर्पित कर सच्चे मन से पूजा करें ।
धनतेरस के दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा भी की जाती है. इस दिन संध्या के समय घर के मुख्य दरवाजे के दोनों ओर अनाज के ढेर पर मिट्टी का बड़ा दीपक रखकर उसे जलाएं. दीपक का मुंह दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए. दीपक जलाते समय इस मंत्र का जाप करें।
मृत्युना दंडपाशाभ्यां कालेन श्याम्या सह ।
त्रयोदश्यां दीप दानात सूर्यज प्रीयतां मम ।।
धनतेरस के दिन धन के देवता कुबेर की पूजा की जाती है. मान्यता है कि उनकी पूजा करने से व्यक्ति को जीवन के हर भौतिक सुख की प्राप्ति होती है. इस दिन भगवान कुबेर की प्रतिमा या फोटो धूप-दीपक दिखाकर पुष्प अर्पित करें. फिर दक्षिण दिशा की ओर हाथ जोड़कर सच्चे मन से इस मंत्र का उच्चारण करें
ॐ श्रीं, ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नम:
धनतेरस के दिन मां लक्ष्मी की पूजा का विधान है. इस दिन मां लक्ष्मी के छोटे-छोट पद चिन्हों को पूरे घर में स्थापित करना शुभ माना जाता है.
धनतेरस के दिन आरोग्य के देवता और आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है. मान्यता है कि इस दिन धन्वंतरि की पूजा करने से आरोग्य और दीर्घायु प्राप्त होती है. इस दिन भगवान धन्वंतरि की प्रतिमा को धूप और दीपक दिखाएं. साथ ही फूल अर्पित कर सच्चे मन से पूजा करें ।

धनतेरस के दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा भी की जाती है. इस दिन संध्या के समय घर के मुख्य दरवाजे के दोनों ओर अनाज के ढेर पर मिट्टी का बड़ा दीपक रखकर उसे जलाएं. दीपक का मुंह दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए. दीपक जलाते समय इस मंत्र का जाप करें।
मृत्युना दंडपाशाभ्यां कालेन श्याम्या सह ।
त्रयोदश्यां दीप दानात सूर्यज प्रीयतां मम ।।
धनतेरस के दिन आरोग्य के देवता और आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है. मान्यता है कि इस दिन धन्वंतरि की पूजा करने से आरोग्य और दीर्घायु प्राप्त होती है. इस दिन भगवान धन्वंतरि की प्रतिमा को धूप और दीपक दिखाएं. साथ ही फूल अर्पित कर सच्चे मन से पूजा करें ।
एक बार यमराज ने अपने दूतों से पूछा कि क्या कभी तुम्हें प्राणियों के प्राण का हरण करते समय किसी पर दयाभाव भी आया है?, तो वे संकोच में पड़कर बोले- नहीं महाराज! यमराज ने उनसे दुबारा पूछा निर्भय करते हुए बोले संकोच मत करो तो दूतों ने डरते-डरते बताया कि एक बार एक ऐसी घटना घटी थी, जिससे हमारा हृदय कांप उठा था।
यमराज ने उत्सुकता पूर्वक दूतों से पूछा तो उन्होंने बताया कि – हंस नाम का राजा एक दिन शिकार करने के लिए गया तो राजा की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया तो ज्योतिषियों ने नक्षत्र गणना करके बताया कि यह बालक जब भी विवाह करेगा, उसके चार दिन बाद ही मर जाएगा। यह जानकर उस राजा ने बालक को यमुना तट की एक गुफा में ब्रह्मचारी के रूप में रखकर बड़ा किया।
एक दिन जब महाराजा हंस की युवा बेटी यमुना तट पर घूम रही थी तो उस ब्रह्मचारी युवक ने मोहित होकर उससे गंधर्व विवाह कर लिया। चौथा दिन पूरा होते ही वह राजकुमार मर गया। अपने पति की मृत्यु देखकर उसकी पत्नी बिलख-बिलखकर रोने लगी। उस नवविवाहिता का करुण विलाप सुनकर हमारा हृदय भी कांप उठा। उस राजकुमार के प्राण हरण करते समय हमारे आंसू नहीं रुक रहे थे। तभी एक यमदूत ने पूछा -क्या अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय नहीं है? यमराज ने इसके बारे में उपाय बताते हुए बोले- हां उपाय तो है। अकाल मृत्यु से छुटकारा पाने के लिए व्यक्ति को धनतेरस के दिन पूजन और दीपदान विधिपूर्वक करना चाहिए। जिस घर में यह पूजन होता है, वहां अकाल मृत्यु का भय नहीं सताता। कहते हैं कि तभी से धनतेरस के दिन यमराज के पूजन के पश्चात दीपदान करने की परंपरा प्रचलित हुई।
दीपदान का महत्व धर्मशास्त्रों में भी उल्लेखित है
कार्तिकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां निशामुखे।
यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युर्विनश्यति।।
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को यमराज के निमित्त दीपदान करने से मृत्यु का भय समाप्त होता है।
धनतेरस के दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा भी की जाती है. इस दिन संध्या के समय घर के मुख्य दरवाजे के दोनों ओर अनाज के ढेर पर मिट्टी का बड़ा दीपक रखकर उसे जलाएं. दीपक का मुंह दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए. दीपक जलाते समय इस मंत्र का जाप करें।
मृत्युना दंडपाशाभ्यां कालेन श्याम्या सह ।
त्रयोदश्यां दीप दानात सूर्यज प्रीयतां मम ।।
धनतेरस के दिन धन के देवता कुबेर की पूजा की जाती है. मान्यता है कि उनकी पूजा करने से व्यक्ति को जीवन के हर भौतिक सुख की प्राप्ति होती है. इस दिन भगवान कुबेर की प्रतिमा या फोटो धूप-दीपक दिखाकर पुष्प अर्पित करें. फिर दक्षिण दिशा की ओर हाथ जोड़कर सच्चे मन से इस मंत्र का उच्चारण करें
ॐ श्रीं, ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नम:
धनतेरस की कथा एक बार देवताओं और दानवों के बीच अमृत के लिए भयंकर युद्द की स्तिथि से बचन के लिए भगवान श्री हरि नारायण ने समुद्र मंथन का सुझाव दिया। जब समुद्र मंथन किया गया तो उसमें से चौदह रत्न कालकूट (हलाहल), ऐरावत, कामधेनु, उच्चैःश्रवा, कौस्तुभमणि, कल्पवृक्ष, रम्भा नामक अप्सरा, लक्ष्मी, वारुणी मदिरा, चन्द्रमा, शारंग धनुष शंख, गंधर्व और अमृत निकला। 14वां रत्न अमृत को भगवान धनवंतरी लेकर आये। इस वजह से कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि को भगवान धनवंतरी की पूजा की जाती है और धनतेरस पर बर्तन आदि खरीदने का महत्व है।
धनतेरस के दिन शुभ मुहूर्त में घर में नई चीजें लायें और मां लक्ष्मी और कुबेर जी की पूजा करने से दरिद्रता दूर होती है और घर में धन के भण्डार भर जाते हैं। धनतेरस पर सोना, चांदी, पीतल और धातुओं के बर्तन आदि खरीदने से उन्नति के रस्ते खुलते हैं और धनतेरस पर हवन करने से भाग्य में राजयोग प्रबल होते हैं और बुरी ऊर्जा समाप्त होती है। क्योंकि पीतल महर्षि धन्वंतरी का धातु है। इतना ही नहीं धनतेरस को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। धनतेरस से ही दीपोत्सव का आरंभ होता है। जैन आगम (जैन साहित्य प्राचीनत) में धनतेरस को ‘धन्य तेरस’ या ‘ध्यान तेरस’ कहते हैं। जैन मान्यता के अनुसार भगवान महावीर इस दिन ध्यान के लिए चले गए थे और तीन दिन के ध्यान के बाद योग निरोध करते हुए दिवाली के दिन निर्वाण (मोक्ष) को प्राप्त हुए। तब से धनतेरस का दिन जैन आगम में धन्य तेरस के नाम से प्रसिद्ध है।
धनतेरस के दिन मां लक्ष्मी की पूजा का विधान है. इस दिन मां लक्ष्मी के छोटे-छोट पद चिन्हों को पूरे घर में स्थापित करना शुभ माना जाता है.
शुभ मुहूर्त
चर – 06:32 से 07:55
लाभ – 07:55 से 09:18
अमृत – 09:18 से 10:42
शुभ – 12:05 से 13:28
चर – 16:15 से 17:38 खरीदारी के खास मुहूर्त
काल- सुबह 7:33 बजे खाद्यान्न खरीदने के लिए शुभ समय है।
शुभ- सुबह 9: 13 का समय गाड़ी, मशीन, कपड़ा और शेयर खरीदने के लिए शुभ है।
चर- दोपहर 2: 12 बजे का समय गाड़ी और गैजेट खरीदने के लिए शुभ है।
लाभ- दोपहर 3: 51 का समय लाभ कमाने वाली मशीन और कम्प्यूटर खरीदने के लिए शुभ है।
अमृत- शाम 5: 31 बजे का समय जेवर और बर्तन खरीदने के लिए शुभ।
काल- 7: 11 बजे का समय घरेलू सामान खरीदने के लिए शुभ है।
धनतरेस पर लक्ष्मी पूजा प्रदोष काल में करना शुभ माना जाता है। इस दिन प्रदोष काल 2 घंटे 24 मिनट का रहेगा। जो शाम 5 बजकर 45 मिनट से 8 बजकर 17 मिनट तक रहेगा। धनतेरस पर चौघड़िया मुहूर्त में कभी भी मां लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए।
धनतेरस से जुड़ी एक कथा है कि कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन देवताओं के कार्य में बाधा डालने के कारण भगवान विष्णु ने असुरों के गुरु शुक्राचार्य की एक आंख फोड़ दी थी। कथा के अनुसार,देवताओं को राजा बलि के भय से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और राजा बलि के यज्ञ स्थल पर पहुंच गए। शुक्राचार्य ने वामन रूप में भी भगवान विष्णु को पहचान लिया और राजा बलि से आग्रह किया कि वामन कुछ भी मांगे उन्हें इंकार कर देना। वामन साक्षात भगवान विष्णु हैं जो देवताओं की सहायता के लिए तुमसे सब कुछ छीनने आए हैं।
बलि ने शुक्राचार्य की बात नहीं मानी। वामन भगवान द्वारा मांगी गयी तीन पग भूमि,दान करने के लिए कमंडल से जल लेकर संकल्प लेने लगे। बलि को दान करने से रोकने के लिए शुक्राचार्य राजा बलि के कमंडल में लघु रूप धारण करके प्रवेश कर गए। इससे कमंडल से जल निकलने का मार्ग बंद हो गया। वामन भगवान शुक्रचार्य की चाल को समझ गए। भगवान वामन ने अपने हाथ में रखे हुए कुशा को कमण्डल में ऐसे रखा कि शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई। शुक्राचार्य छटपटाकर कमण्डल से निकल आए।
इसके बाद बलि ने तीन पग भूमि दान करने का संकल्प ले लिया। तब भगवान वामन ने अपने एक पैर से संपूर्ण पृथ्वी को नाप लिया और दूसरे पग से अंतरिक्ष को। तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं होने पर बलि ने अपना सिर वामन भगवान के चरणों में रख दिया। बलि दान में अपना सब कुछ गंवा बैठा। इस तरह बलि के भय से देवताओं को मुक्ति मिली और बलि ने जो धन-संपत्ति देवताओं से छीन ली थी उससे कई गुणा धन-संपत्ति देवताओं को मिल गई। इस उपलक्ष्य में भी धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है।
रविशराय गौड़
ज्योतिर्विद