शिव निंदा से हुआ था दक्ष प्रजापति का यज्ञ अधुरा, जानिये क्यूँ लगा बकरे का सर

भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से एक प्रजापति दक्ष का पहला विवाह स्वायंभुव मनु की तृतीय पुत्री प्रसूति से हुआ। मान्यता अनुसार भगवान ब्रह्मा के दक्षिणा अंगुष्ठ से प्रजापति दक्ष की उत्पत्ति हुई, लेकिन कल्पांतर में वही प्रचेता के पुत्र हुए। फिर उन्होंने उन्होंने प्रजापति वीरण की कन्या असिकी को पत्नी बनाया। असिकी को वीरणी भी कहा जाता है।

पुराणों के अनुसार दक्ष प्रजापति परमपिता ब्रह्मा के पुत्र थे, जो कश्मीर घाटी के हिमालय क्षेत्र में रहते थे। प्रजापति दक्ष की दो पत्नियां थीं- प्रसूति और वीरणी। प्रसूति से दक्ष की 24 कन्याएं थीं और वीरणी से 60 कन्याएं। इस तरह दक्ष की 84 पुत्रियां थीं। समस्त दैत्य, गंधर्व, अप्सराएं, पक्षी, पशु सब सृष्टि इन्हीं कन्याओं से उत्पन्न हुई। दक्ष की ये सभी कन्याएं, देवी, यक्षिणी, पिशाचिनी आदि कहलाईं। उक्त कन्याओं और इनकी पुत्रियों को ही किसी न किसी रूप में पूजा जाता है। सभी की अलग-अलग कहानियां हैं।
*प्रसूति से दक्ष की 24 पुत्रियां- श्रद्धा, लक्ष्मी, धृति, तुष्टि, पुष्टि, मेधा, क्रिया, बुद्धि, लज्जा, वपु, शांति, सिद्धि, कीर्ति, ख्याति, सती, सम्भूति, स्मृति, प्रीति, क्षमा, सन्नति, अनुसूया, ऊर्जा, स्वाहा और स्वधा।

पुत्रियों के पति के नाम : पर्वत राजा दक्ष ने अपनी 13 पुत्रियों का विवाह धर्म से किया। ये 13 पुत्रियां हैं- श्रद्धा, लक्ष्मी, धृति, तुष्टि, पुष्टि, मेधा, क्रिया, बुद्धि, लज्जा, वपु, शांति, सिद्धि और कीर्ति।
इसके बाद ख्याति का विवाह महर्षि भृगु से, सती का विवाह रुद्र (शिव) से, सम्भूति का विवाह महर्षि मरीचि से, स्मृति का विवाह महर्षि अंगीरस से, प्रीति का विवाह महर्षि पुलत्स्य से, सन्नति का कृत से, अनुसूया का महर्षि अत्रि से, ऊर्जा का महर्षि वशिष्ठ से, स्वाहा का पितृस से हुआ।

एक बार दक्ष ने विशाल यज्ञ कराया. भृगु इसके मुख्य पुरोहित थे. सभी देवता, ब्रह्मा, विष्णु और महेश उसमें पधारे. जब दक्ष आए तो सब ने उठकर अभिवादन किया Iब्रह्मा और भगवान् शिव नहीं उठे. इससे दक्ष को बड़ा अपमान महसूस हुआ

दक्ष ने सोचा चलो ब्रह्मा जी तो पिता हैं वे खड़े नहीं हुए तो क्या हुआ पर शंकर जी तो दामाद हैं और दामाद पुत्र के समान होता है। दक्ष ने सोचा- मेरे आने पर ये खड़ा नहीं हुआ, ये कितना उद्दंड है। मैंने तो अपनी मृगनयनी बेटी का विवाह इस मरकट-लोचन के साथ कर दिया इसको तो कोई सभ्यता, शिष्टाचार ही नहीं। इस तरह से दक्ष ने भगवान शिव को बहुत अपशब्द बोले और खूब गाली-गलोच किया। घोषणा की कि आगे से किसी यज्ञ में शिवजी का भाग नहीं होगा. इस पर शिवगण नन्दी बहुत क्रोधित हुएI

अब प्रश्न उठता है- दक्ष की सभा में शिवजी उसके सम्मान के लिए क्यों नही उठे? तो इसका उत्तर है शिवजी का उद्देश्य दक्ष का अपमान करना नहीं था, वे तो भगवान के ध्यान में ऐसे निमग्न बेठे थे की उनको पता ही नहीं लगा दक्ष कब आया? जब दक्ष गाली देने लगा तब उनका ध्यान टूटा। तब उन्होंने देखा दक्ष अत्यंत क्रोधित होकर उन्हें गाली दे रहा है।

यही है आत्मानिष्ठ महापुरुष की पहचान। अगर अनजाने में कोई मर्यादा का उलंघन हो जाये तो उसके परिणामस्वरूप समाज तो कुछ न कुछ बोलेगा ही, उनके बोलने पर भी महापुरुष की कोई प्रतिक्रिया नहीं होती।

नंदी ने दक्ष को शाप दिया कि जिस मुख से उन्होंने महादेव का अपमान किया वह बकरे का हो जाएगा. नन्दीश्वर ने दूसरा शाप ब्राह्मणों को दे दिया- तुम लोग दक्ष जैसे दुष्ट के यहाँ यज्ञ करने आये हो, दक्ष के सहयोगियों को भोजन के लिए भीख पर आश्रित होना पड़ेगा I तुम्हारी विद्या केवल जीविका के लिये रह जायगी। तुमको ज्ञान कभी नहीं होगा।

अब ब्राह्मणों के गुरु भृगु ऋषि बड़े क्रोधित हुए, वो दक्ष के सहयोगी और यज्ञ के पुरोहित थे, वो बोले- हमनें क्या किया? हमें तो अकारण ही शाप दे दिया। उन्होंने भी शाप दिया कि शिवभक्त शास्त्रों के विरूद्ध कार्य करने वाले, पाखंडी और सुरापानी (शराबी) हो जाएं I

महादेव यज्ञ में इस तरह के व्यवहार और एक दूसरे को शाप देता देखकर खिन्न हो गए और बिना किसी को कुछ कहे वहां से चले गए

दक्ष इस यज्ञ में उत्पन विवाद और परिणाम सेवाय्थित थे उन्होंने महादेव का अपमान करने की ठान रखी थी I उन्होंने एक और यज्ञ का आयोजन किया जिसमें शिव और सती को निमंत्रित नहीं किया गया Iसती का यज्ञ में जाने का मन था किन्तु महादेव ने मना किया. उन्होंने सती से कहा- आपके पिता यह यज्ञ मुझे अपमानित करने के लिए करा रहे हैं, आप वहां न जाएं. आपका अपमान होगा और मैं आपको खो दूंगा लेकिन सती अपने को रोक न सकीं और चली गयीं. वहां उन्होंने दक्ष द्वारा शिवजी के बारे में कहे गए अपशब्द सुने और खुद को अपमानित महसूस किया उनको भगवान शिव की दीगयी सलाह का स्मरण हुआ I

सती गुस्से से बोली जो भी शिवभक्त हो यहाँ से चला जाए इतना सुनते ही ब्रह्मा , विष्णु समेत सभी देवता वहां से चले गये I सटी ने दक्ष से कहा की इस शरीर में मैं आपकी पुत्री हूँ ,लेकिन इस शरीर ने शिव निंदा सुनी है इसलिए इस शरीर को मैं त्यागती हूँ इतना कह कर वो यग्य की अग्नि में ही कूद गयी I उनके साथ गए शिव गण क्रोधित हुए और दक्ष को मारने को आगे बढ़े लेकिन भ्रगु ने यग्य की अग्नि से गण निकालेओर्शिव गणों को भगा दिया

महादेव को जब ये बात पता चली तो तो उन्होंने वीरभद्र को जटा से उत्पन्न किया और वहां भेजा वीरभद्र ने वहां जाकर दक्ष का सर काट दिया I जिसके बाद भगवान विष्णु ब्राह्मण समेत सभी देवता भगवान् शिव के पास गये और उनसे यग्य को पूरा करने के लिए दक्ष को पुनः जीवित करने की प्रार्थना की I महादेव यज्ञशाला में आये और दक्ष के शरीर पर बकरे का सर लगाया
सर कटने और नया सर लगने के बाद दक्ष ने अपने अहंकार के लिए महादेव से माफ़ी मांगी और यज्ञ पूरा किया

प्रस्तुति : आशु भटनागर

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