दिनचर्या
- मलत्याग (Defecation) : प्रातः काल से ही प्रारम्भ करते हुए रात्रि को लिया हुआ भोजन पचन हुआ है या नहीं ऐसे जीर्णाजीर्ण का विचार कर ब्रह्म् मुहूर्तमें उठ्कर वेग प्राप्त मल,मूत्र का उत्सर्जन करना चाहियेI यहां पर कहा गया है वेग प्राप्त मल,मूत्र उत्सर्जन अर्थात बलपूर्वक् वेग प्राप्त् न हो फिर भी मल,मूत्र उत्सर्जन करने से अर्श (बवासीर- piles), गुद्भ्रंश (anal prolapse), कृच्छमूत्र(urine incontinence) जैसे रोग होने की संभावना होती है I अतः वेग प्राप्त मलों का ही उत्सर्जन करें I
- उषःपान : आयुर्वेद में प्रातःकाल उषःपान अर्थात खाली पेट पानी पीना चाहिये ऐसा कहा हैI उषःपान करने से रात्रि दौरान लिये गये भोजन के किट्ट् भाग को मल द्वारा निष्कासित करने में सहायता मिलती है, इसके अलावा शुद्ध जल से आंतों की शुद्धि भी होती है I
- दंतधावन, जिह्वा निर्लेखन एवं मुख प्रक्षालन (brushing of teeth, tongue cleaning and gargling) : उषःपान एवं मल मुत्र विसर्जन के बाद दंत धावन ( brushing of teeth) कहा गया है I आज के आधुनिक जीवन में जहां “ Bed Tea” का प्रचलन है, वहां शास्त्रोक्त दंत धावन से मुख की दुर्गंधी , क्लेद एवं रात्रि के शीत काल मे जमा हुआ कफ निष्कासित होकर मुख निर्मल होता है, अन्न के प्रति रुचि उत्पन्न होती है I
दंतधावनके पश्चात जिह्वा निर्लेखन अर्थात जीभको साफ करना. इस क्रिया से जिह्वामूलगत दुर्गंधकारक मल का नाश होता है,
तत्पश्चात मुख प्रक्षालन अर्थात कुल्ले करने से रात्रिमें जड हुई मांसपेशियों में हलन चलन होकर वे एक्टिव होती है, और दंतमूल द्रढ होते हैंI यह सब करने के पूर्व bed-tea का सेवन करनेवाले मनुष्य उपरोक्त सभी लाभ से वंचित रहता है I इससे विपरित सुबह ही सुबह उत्तेजक पेय चाय पीने से सुषुप्त आंतें उत्तेजित होकर अम्लपित्त(Acidity) होती है I
- नख एवं केश कर्तन : अर्थात नाखून एवं बाल काटना I वैसे तो ये बहुत ही सामान्य सी बातें हैं किंतु आयुर्वेद में इसका भी अपना महत्व है I नाखून एवं बाल काटना शूचिकर है जो आज के युग मे भी सुसंगत है I यह क्रिया उत्साह्वर्धक भी है I व्यवस्थित रूप से कपडों में सज्ज, साफ सुथरा व्यक्ति presentable –( who carries himself in a very good manner) होता है, जो स्वयं एवं दूसरों के लिये नेत्र सुखदायक होता है I इसिलिये कहा भी जाता है – First impression is the last impression.
- अभ्यंग एवं स्नान : दिनचर्या के अंतर्गत अभ्यंग अर्थात मसाज का वर्णन है जिसमे शरीर कांतिमय एवं पुष्टिकर (बलवान) बनता है और त्वचा स्निग्ध रहती हैI Massage gives body strength and maintains the moisture of the skin. इसके अलावा स्नानादि कर्मका भी विशेष वर्णन है, जो आधुनिक युग से मेल खाता हैI आज हम जगह जगह हेल्थ क्लब, हेल्थ स्पा देखते हैं. इन हेल्थ क्लबों में विविध प्रकार के मसाज , होट एंड कॉल्ड बाथ , स्टीम बाथ आदि करवाया जाता है जो आयुर्वेद में हजारों साल पहेले ही वर्णन किया गया है I
आज हम फेशियल, मॅनीक्युअर, पेडिक्युअर जैसी सौंदर्य क्रियाएं ब्युटी पार्लर में करवाते हैं जो आयुर्वेद में पहेलेसे ही लीखी हुइ है I
- ऊद्वर्तन एवं उद्घर्षण ( फ़ेशियल) : फेशियल के लिये हम जो स्क्रब उदा: apricot scrub का उपयोग करते हैं उसे ही उद्घर्षण कहा जाता है I उद्घर्षण त्वचागत सिराओं के मुख खोलकर भ्राजक पित्त को दीप्त करता है और त्वचा को चमकीली बनाता हैI स्क्रब के बाद फेशियल मे हम जो क्रीम लगाते हैं उसे आयुर्वेद एं उद्वर्तन कहेते हैं जिससे त्वचा में स्निग्धता आति है और त्वचा कोमल रहेती हैI
- पादाभ्यंग (मॅनीकयुअर , पेडीक्युअर) : मॅनीकयुअर , पेडीक्युअर आयुर्वेद के पादाभ्यंग के अंतर्गत आता हैI मॅनीक्युअर ,पेडीक्युअर में हाथ पैर पर का मालिश करके उन्हें निम्बुयुक्त ग्लिसरीन के पानी में रखकर, स्क्रब लगाकर रुक्ष त्वचा को दूर किया जाता है I आयुर्वेद में हाथ पैर पर तेल का मालिश कर, उबटन लगाकर, गर्म पानी से धोनेका विधान है, जिससे हाथ पैर की थकावट दूर होती है, हाथ पैर की त्वचा कोमल होती है I
- अनुलेपन (पॅक लगाना या लेप लगाना) : हम शरीर की त्वचा पर चंदन या मुल्तानी मिट्टी का जो लेप लगाते हैं जो फेस पॅक या हर्बल पॅक के नाम से प्रचलित है, वो ही आयुर्वेद का अनुलेपन है, जो त्वचा के वर्ण में निखार लाता है I अर्थात अनुलेपन त्वचा के रंग को एवं त्वचा की सुंदरता को बढाता है.
आयुर्वेद में दिनचर्या के अंतर्गत व्यायाम एवं प्राणायाम का अत्यंत आवश्यक रूप से समावेश किया गया है I
- व्यायाम : सामान्य रूप से शरीर में श्रम या थकान उत्पन्न करनेवाले कार्य को व्यायाम कहेते हैं I व्यायाम से शरीर में लघुता उत्पन्न होकर पाचक अग्नि की वृद्धि होती है I शरीर द्वारा ग्रह्ण किया गया अन्न व्यवस्थित रूप्से पचन होने के लिये व्यायाम की आवश्यकता होती है I जिसका आज का विज्ञान भी समर्थन करता हैI आज के युग मे मोटापा एवं डायाबीटीझ के मरीजों को भी डॉक्टर मॉर्निंग वॉक की सलाह देते हैं जो व्यायाम ही है I जबकि आयुर्वेद शास्त्र ने रोग ना हो इसीलिये दिनचर्या में व्यायाम का समावेश कर के व्यायाम का महत्व बताया हैI
10 प्राणायाम: पश्चिम की संस्कृति से आज फिर दुनिया पूर्व की संस्कृति की ओर लौट रही हैI आज योग और प्राणायम् का महत्व पूरी दुनिया समझ रही है I ध्यान,धारणा, समाधि, मेडिटेशन के कैम्प हर जगह चल रए हैं I किंतू सूर्य उपासना और गायत्री मंत्र जाप आयुर्वेद मे वर्षों पूर्व से हि कहे गये हैं, जिसे दिनचर्या में ही समावेश किया गया हैI उत्तम मनोदैहिक स्वास्थ्यके लिये संध्या उपासना और योगासन अभ्यास लाभकारी है I
आज कल घर में स्लीपर्स पहन के घुमने का चलन है जो कंई वृद्धजनों को नहीं पसंद या तो उन्हे यह हाय-फाय सोसायटी का चलन लगता हैI किंतू पैरों में पादत्राण पहनना लाभदायी है, जिससे पैरों के रोग नहीं होतेI इससे चलने में सुविधा रहेती हैI आंखों के लिये फायदेमंद है, आधुनिक विज्ञान के अनुसार विविध कृमिओं का संक्रमण (प्रसार) पैरों के माध्यम से शरीरमें होता हैI डायाबीटिज के रोगीओं में कभी शुगर का प्रमाण ज्यादा होता है, तब अक्सर पैरों में घाव हो जाते हैं और लगने के बाद भी उन्हे संवेदना नहीं होती I कभी कभी ये घाव बढकर गॅंग्रीन हो जाता है I अतः आयुर्वेदानुसार पैरों में चप्पल पहेनने का जो विधान है वह योग्य है I
आयुर्वेद के तीन उपस्तम्भ
आहार , निंद्रा और ब्रह्मचर्य ये तीनों आयुर्वेद के उपस्तम्भ माने जाते हैं , इन तीनोंका युक्तिपूर्वक सेवन दिनचर्या का महत्व का अंग है I इन तीनों के समुचित सेवन से शरीर उपस्तब्ध अर्थात स्थैर्य को प्राप्त कर के सार्थक होता हैI अतः इन तीनों को उपस्तम्भ कहा जाता है I
डॉ. नैना म. वसानी आयुर्वेदाचार्य , मुंबई
ये लेख पहले samajvikassamvad में प्रकाशित हो चूका है